वो लोग शायद कुछ अलग ही मिट्टी के होते होंगे जो अपनी भावनाओं को छुपा लेते होंगे, जब रुलाई फूटे, खुद को हंसाने लगो, गुस्सा आये तो कहीं घूमने चले जाओ, बच्चे को डांटने का मन हो तो प्यार से आप-आप कहकर पुचकारने लगो....... हर समय कैसे कोई नॉर्मल बिहेव कर सकता है . और जो वाकई ऐसा है, मैं उसे सलाम करती हूँ. पता नहीं इतना धैर्य कैसे रख पाते हैं लोग !
मेरी कलीग की माँ गुज़र गयीं, ऐसे में किसी को सांत्वना देना क्या और न देना क्या. बाद में इस पर चर्चा हुई तो सबके मुंह पर एक ही बात थी कि उन्होंने कैसे खुद के साथ औरों को भी संभाल रखा था. बात है भी सच, वो अपने माता-पिता की तीन बेटियों में सबसे बड़ी हैं और अगर वो इतनी मजबूती नहीं दिखाएंगी तो औरों को कैसे समझायेंगी. चर्चा आगे बढा तो कुछ ऐसी बातें होने लगीं कि ज्यादा सुसंस्कृत लोग अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रख लेते हैं , गांवों में लोग चीखें मार-मारकर रोते हैं और कई बार तो यह परम्परा ही के तहत होता है. यानी रोना भी ज़रूरी है, भले ही वो आये या नहीं।
रोने की बात चली है तो इक वाकया याद आने लगा है. कोई १८-१९ वर्ष पहले की बात है, मैं हॉस्टल जा रही थी, रास्ते मे एक जगह बस रुकी तो सबकी नज़र बाहर की तरफ अनायास ही चली गयी. एक कम उम्र की नव-विवाहिता शायद अपनी ससुराल जा रही थी अपने माँ-पिता और छोटे भाई -बहन से लिपट कर खूब रो रही थी, उसका कलपना देख कर बस में बैठे तमाम लोगों की आंखें भर आयीं , लाल साड़ी में लिपटी, गहने और बड़ी सी नथ संभालती वह लडकी अपनी सूजी हुई आंखें लिए बस मे बैठी, बगल में उसका नया-नया पति कुछ सिमटता सा बैठा. बस चल पडी, लोग अभी सहज भी न हो पाए थे कि अचानक जोर की खिलखिलाहट सुनकर सबने पीछे की सीट की तरफ सिर घुमाकर देखा. लड़की बेफिक्री से अपने पति की किसी बात पर उतनी ही जोर से हंस रही थी, जितनी जोर से कुछ देर पहले तक वो रो रही थी . लोगों में खुसर-पुसर शुरू हो गयी, लेकिन कम से कम इतना हो गया कि माहौल में जो भारीपन अब तक छाया हुआ था, वो हल्का हो गया।
रोना भी सहज है, उतना ही-जितना कि हँसना, सोना, खाना या काम करना. इतना भी सुसंस्कृत क्यों होना कि रोना आये तो रो न सकें, हँसना आये तो खुलकर हंस न सकें और किसी पर प्यार आये तो उसे जता भी न सकें. ये तो सिर्फ फिल्मों मे होता है या फिर हमारे राजनेताओं में इतनी कूवत होती है कि किसी की मौत पर बाकायदा झक सफ़ेद कपडे पहने और आँखों में काला चश्मा चढाये अपने मनोभावों को छुपा लेते हैं. हमारे जैसे साधारण लोग तो बात-बेबात रो लेते हैं, गुस्सा आये तो चीख भी लेते हैं, बच्चों को बुरी तरह डांटकर अपना तनाव कम कर लेते हैं और सच कहें तो मुझे तो ये गाना भी बिलकुल नहीं भाता -रोना कभी नहीं रोना चाहे टूट जाये कोई खिलौना ....कोई मतलब है इस बात का भला!
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4 comments:
"रोना कभी नहीं रोना चाहे टूट जाये कोई खिलौना ....कोई मतलब है इस बात का भला!" बिलकुल सही कहा आपने.
मैं भी यह ही मानता हूँ की रोने में, या गुस्सा होने में कोई बुराई नहीं है. अगर रोना आ ही रहा है तो रोना ही बेहतर है, और नहीं आ रहा, तो दिखावटी रोना तो बस, उफ़.
भावनाओं की अभिव्यक्ति में बेईमानी शायद उचित नहीं.
हाँ "हर समय कैसे कोई नॉर्मल बिहेव कर सकता है . और जो वाकई ऐसा है, मैं उसे सलाम करती हूँ." से मैं भी सहमत हूँ. अगर इंसान में अन्दर ही बदलाव आ जाएं, की जिंदगी के उतार-चढाव में समान रह सके तो अलग बात .. वरना बेईमानी बेकार है ..
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इजाज़त दें, तो आपकी पोस्ट के अतिरिक्त भी कुछ लिखना चाहता हूँ - आशा है आप बुरा नहीं मानेंगी.
जब भी आपका मन करे, जिस भी विषेय पर मन करे, पोस्ट लिखते रहें. मैं समझता हूँ की आप तो बहुत अच्छा लिख सकती हैं .. यूँ भी पत्रकार हैं तो अच्छा तो जरूर लिखती होंगी, पर शायद सामाजिक विषयों पर आप बहुत अच्छा लिख सकती हैं ..
मैं media से नहीं हूँ और ना ही मेरा और कोई लालच, कम से कम मुझे नहीं पता - हाँ, आप और लिखें, यह जरूर लालच है! केवल इतना है की बहुत पहले मैंने कभी आपकी एक टिपण्णी पढी थी - यह भी याद नहीं कहाँ और क्या, पर वो और लोगों से काफ़ी अलग थी. तभी से कभी-कभी आपका ब्लॉग देखता हूँ.
शायद आपने ब्लॉग हेडर का फोटो भी बदला है - नया फोटो (यदि नया है तो!!) अच्छा लग रहा है - क्या आपने खीचा है - कहाँ की फोटो है यह ..
और अभी चेक किया तो शायद आपका ब्लॉग किसी aggregator पर भी नहीं आता.. यदि आप उचित समझें तो इसे रजिस्टर करवाएं, जिससे की और भी लोग आपका चिटठा पढ़ पाएं. बाकी जैसा आपको उचित लगे .. जो आपको अच्छा लगे ...
नमस्कार और शुभकामनाएं .
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/
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hindi me kaise likhoon.
nice blog, but i want new post..carry on...
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